कुछ कहें
कुछ कहें ये एक अलसाई सी सुबह है .सूरज भी बादलों की ढांप लिए है .कहने को दोस्तों ये नए साल का जश्न है,लेकिन कोहरे की चादर के बीच ये कैसा नया साल .जो कुछ भी बीते दिनों हुआ वो हमारी मुट्ठियो को भीच देने वाला था । तब ख़ामोशी ने हाथ कड़े किये और संवेदनाओं का जन-सैलाब सड़कों पर उतर पड़ा।दुष्यन्त की पँ…